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जब बेरहम दुर्जनसिंह विक्रमगढ़ की रानी महामाया का शीलभंग करने की कोशिश करता है तो वह उसका अेक पैर काट देती है. इसका बदला लेने के लिअे दुर्जनसिंह महामाया के पति विक्रमसिंह को लड़ाई के लिअे चुनौती देता है. दुर्जनसिंह हार जाता है; मगर वह कपट से विक्रमसिंह का खून कर देता है. अेक वफ़ादार नौकर काका महामाया को बचाकर ले जाता है; मगर विक्रमसिंह का छोटा बच्चा, वीरसिंह को दुर्जनसिंह, कैद में डाल देता है.
कई साल बीतते है. बच्चा वीरसिंह अब सुन्दर जवान हो जाता है, लेकिन उसे सभ्यता का पता नहीं. वह मनुष्य के चोले में जानवर है. काका वीरसिंह को बचाकर ले जाता है और उसे दीपा के हाथ में सौंप कर मर जाता है.
अपने प्यार से दीपा वीरसिंह को इनसान बनाती है. जब वीरसिंह अपनी माँ से मिलने जाता है तो माँ कहती है- "इस राज्य की सब औरतों के पैरों में दुर्जनसिंह ने बेड़ियाँ पहना दी हैं; जब तक सब आज़ाद नहीं होंगी मैं तुझ से नहीं मिलूँगी". वीरसिंह क़सम खता है कि वह माँ की इच्छा पूरा करेगा.
क़सम को पूरा करने में वीरसिंह को किन-किन मुसीबतों का सामना करना पड़ा?
उसने अपनी माँ को शेर के पंजे से कैसे छुड़ाया?
इन सवालों के दिलचस्प जवाब आप परदे पर देखिये.
[From the official press booklet]